थायराइड क्या है?
थायराइड एक एंडोक्राइन सिस्टम(endocrine system) की ग्रंथि(gland) है, जो गले के नीचे पाई जाती है। यह ग्रंथि थायराइड हार्मोन्स (T3 और T4) का निर्माण करती है, जो शरीर में ऊर्जा के बनने, उसका संतुलन बनाने, और अधिक से अधिक एक्स्ट्रा एनर्जी के प्रयोग को कण्ट्रोल करने में मदद करती हैं। थायरॉयड की समस्याएँ शरीर के ` सामान्य कार्यों में दिक्कत का कारण बन सकती हैं। इस बीमारी के दौरान किसी के शरीर में कम थायरॉयड हॉर्मोन बनते है, तो किसी में इनकी मात्रा अधिक हो सकती है। और दोनों ही कंडीशन सामान्य व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में क़रीब 4.2 करोड़ थायरॉइड के मरीज़ पाए गए हैं। और इनकी संख्या कम होने के बजाए बढ़ने के ज्यादे आसार देखे गए है। इसलिए इस समस्या की जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 मई का दिन थाइरोइड जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हम इसके विकार, कारण, इलाज के साथ ही अन्य जरुरी जानकारी भी साझा करेंगे।
थायराइड की रचना (Composition of Thyroid)
थाइरोइड की बनावट में अलग-अलग तत्वों और कोशिकाओं का योगदान होता है। जिसमे सबसे ज्यादा और सीधा संबंध पर्यावरण के एक तत्व के साथ होता है, जिसे आयोडीन कहा जाता है।
आयोडीन हमारे शरीर के लिए एक बहुत ही जरुरी तत्व है जो खाद्य पदार्थ से प्राप्त होता है। थायराइड की कोशिकाएं आयोडीन के कम्पोनेंट को अधिक से अधिक छोटे टुकड़े में करके एनर्जी के रूप में अपनाती हैं।
थायराइड की मुख्य रचना में एक प्रमुख भूमिका थाइरोग्लोबुलीन (Thyroglobulin) नामक प्रोटीन की भी होती है, जो आयोडीन के साथ मिलकर थायरॉक्सीन और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3 और T4) नामक हॉर्मोन्स का निर्माण करती हैं।
T3 और T4 हॉर्मोन्स खासकर ऊर्जा के प्रोडक्शन और शरीर के मेटाबोलिक प्रक्रियाओं को कण्ट्रोल करने में सहायक होते हैं।
थायराइड में पैरा-फोल्लिक्युलर कोशिकाएं होती हैं जो आयोडीन को धातु से जोड़ने का काम करती हैं और हॉर्मोन्स की सही मात्रा बनाने में सहायक साबित होती हैं।
थायराइड की सही रचना और कार्य, शरीर के सामान्य ऊर्जा स्तर और अन्य अंगों की सही गतिविधियों के लिए जरुरी है।
थायराइड विकार (thyroid disorder)
थायराइड विकार की स्थिति तब देखने को मिलती है जब थायराइड ग्रंथि कारगर तरीके से काम नहीं करती। साथ ही थायराइड हॉर्मोन्स की उत्पत्ति में असमान्यता भी देखने को मिलती है। यह अलग-अलग तरह के हो सकते है जिनमे से इनके दो प्रमुख प्रकार हैं – हाइपो-थायराइडिज़म और हाइपर-थायराइडिज़म।
हाइपो थायराइडिज़म
हाइपोथायराइडिज़म में, थायराइड सामान्य रूप की तुलना कम हॉर्मोन्स बनाने लगते हैं, जिससे शरीर के एनर्जी लेवल में कमी देखने को मिलती है।इस स्थिति में थायराइड ग्रंथि नियमित रूप से कारगर तरीके से काम नहीं करती है और थायराइड हॉर्मोन्स (T3 और T4) की मात्रा में कमी होती है। ऐसा होने से, शरीर की सामान्य क्रियाएँ धीमी हो सकती हैं और व्यक्ति को अलग-अलग समस्याएं हो सकती हैं।
हाइपो थायराइडिज़म के लक्षण
- थकान: कम एनर्जी बनने के कारण व्यक्ति में अधिक थकान का एहसास हो सकता है।
- वजन में बढ़ोतरी: वजन बढ़ने की समस्या हो सकती है। यह वजन अधिक भोजन की वजह से नहीं बल्कि थाइरोइड की बीमारी के कारण बढ़ता है।
- ठंडक: ठंड लगने के कारण इम्यून सिस्टम पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- मानसिक समस्याएं: चिंता, उदासी, और ध्यान में कमी हो सकती है।
- भूख की समस्या: व्यक्ति में पहले की अपेक्षा भूख में कमी भी देखने को मिल सकती है।
हाइपो थायराइडिज़म के कारण
- ऑटोइम्यून रोग: यह थायराइड को अपने ही शरीर के ऊपर होने वाले हमलों के लिए निष्क्रिय कर सकता है।
- थायरॉइड ग्रंथि की समस्याएं: ग्रंथि में कैंसर या सूजन जैसी किसी भी समस्या से यह स्थिति देखने को मिल सकती है।
- आयोडीन की कमी: शरीर में आयोडीन की कमी को इस समस्या का मुख्य कारण कहा जा सकता है।
- हाइपोथायराइडिज़म का सही इलाज थायराइड के लिए उचित मात्रा में आयोडीन प्रदान करने के रूप में किया जा सकता है, और इसे चिकित्सक की सुरक्षा और बताए गए तरीके से किया जाना चाहिए।
हाइपर थायराइडिज़म
हाइपरथायराइडिज़म में, थायराइड ग्रंथि सामान्य से अधिक हॉर्मोन्स (ग्लूकोज़ कोंट्रोल करने वाले) बनाने लगती है, जिससे शरीर में सामान्य से अधिक मात्रा में ग्लूकोज़ का प्रोडक्शन होने लगता है। ऐसा होने से शरीर के काल्शियम स्तर का बैलेंस ख़राब हो सकता है और यह अनेक प्रकार की गंभीर समस्याओं को भी जन्म दे सकता हैं।
हाइपर थायराइडिज़म के लक्षण
- उच्च रक्तचाप: बिना किसी कारण अचानक बढ़ता हुआ रक्तचाप इस समस्या के लक्षण के रूप में देखा जा सकता है।
- वजन में कमी: व्यक्ति में सामान्य की तुलना वजन में कमी देखने को मिल सकती है।
- बोन प्रॉब्लम्स: हड्डियों में कमजोरी और बोन पेन की समस्याएं सामने आ सकती हैं।
- पेशाब में समस्याएं: ग्लूकोज़ के अतिरिक्त मात्रा के कारण पेशाब में भी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं।
- पेट में समस्याएं: पेट में दर्द की समस्या हो सकती हैं।
हाइपर थायराइडिज़म के कारण
- थायरॉइड ग्रंथि से जुडी समस्या: ग्रंथि में किसी भी समस्या के कारण इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
- तीसरे ग्रंथि में ट्यूमर का होना: थायराइड के पास एक तीसरी ग्रंथि हो सकती है जिसमें ट्यूमर होने का खतरा बना रहता है।
- ऑटोइम्यून रोग: इस केस में इम्यून सिस्टम गलती से थाइरोइड हॉर्मोन्स को दुश्मन समझ कर उसे खत्म करने लगता है। ऐसा होने से यह समस्या जन्म ले सकती है और इसे हाइपरथायराइडिज़म का मुख्य कारण भी कहना गलत नहीं होगा।
थायराइड के अन्य कारण (Other causes of thyroid)
थायराइड रोग के कई कारण हो सकते हैं जो थायराइड ग्रंथि के सामान्य कार्यों में असमान्ता पैदा कर सकते हैं। ये कारण व्यक्ति की आयु, जीवनशैली, और आनुवंछिक तत्वों पर निर्भर कर सकते हैं। निम्नलिखित कुछ सामान्य कारण हैं:
- आयोडीन की कमी या अधिकता:
आप को तो पता ही है की आयोडीन थायराइड हॉर्मोन्स के लिए बहुत जरुरी पदार्थ है। आयोडीन की कमी या अधिकता थायराइड के कार्य को प्रभावित कर सकती है। - ग्रंथि में किसी प्रकार की समस्या:
थायराइड ग्रंथि में ट्यूमर या सिस्ट(गाँठ या पुटि भी खा जाता है) होने के कारण इसके कार्य में असमानता देखने को मिल सकती है। - जीवनशैली और आहार:
अस्वस्थ जीवनशैली, अधिक तनाव, और ख़राब आहार जैसे पैक्ड फ़ूड, प्रोसेस्ड फ़ूड, और फ़ास्ट फ़ूड का सेवन भी थायराइड के बढ़ने का कारण हो सकता है। - आनुवंछिक तत्व(genetic factors):
थायराइड की समस्या के पीछे जेनेटिक कारक का भी योगदान हो सकता है, जैसे कि जेनेटिक परिवारगत प्रवृत्ति(genetic family predisposition). - प्रदूषण:
वायु प्रदूषण और अन्य प्रदूषण भी थायराइड को प्रभावित कर सकते हैं। - ऑटोइम्यून रोग:
थायराइड को खुद के शरीर के खिलाफ होने वाले ऑटोइम्यून रोगों का शिकार बनना पड़ सकता है, जिसके कारण हाशिमोटो थायरॉयडिटिस और ग्रेव्स रोग जैसी समस्याएं देखने को मिलती है। इसमें शरीर अपने ही थायराइड हॉर्मोन्स को नष्ट करने का प्रयास करने लगता है। - रेडियेशन:
उच्च स्तर की रेडियेशन, जिसमे मोबाइल या अन्य रेडिएटेड मशीने शामिल हो सकती है, का सीधा प्रभाव थायराइड के कार्य पर हो सकता है। - बदलते हुए हार्मोन्स:
गर्भावस्था, प्रजनन, और अन्य जीवन स्तिथियों में हार्मोन्स में हो रहे बदलाव भी थायराइड को प्रभावित कर सकते हैं। - बढ़ती आयु:
बढ़ती आयु के साथ थायराइड कम हॉर्मोन्स बनाने लगता है जिसके कारण अनेक समस्याएं बढ़ सकती हैं। - उच्च जीवाणु या बैक्टीरिया:
कुछ बैक्टीरिया और जीवाणुओं का असंतुलन भी थायराइड को प्रभावित कर सकता है। अक्सर एस. ऑरियस या स्ट्रेप्टोकोक्की जैसे ग्राम-पॉजिटिव जीवाणु इसके कारण बन सकते हैं।
थायराइड विकार का निदान और इलाज समय रहते करना जरुरी है। निम्नलिखित हैं थायराइड विकार का निदान और इसका इलाज करने के कुछ सामान्य तरीके:
निदान:
- बीमार का परीक्षण (Clinical Examination):
चिकित्सक पीड़ित व्यक्ति के शारीरिक और चिकित्सीय इतिहास का आकलन करेंगे, और यदि थायराइड विकार की संभावना हो, तो विशेष जाँचें और परीक्षण की सलाह देंगे। - थायराइड फंक्शन टेस्ट (Thyroid Function Test):
इस टेस्ट में थायरॉइड हॉर्मोन्स (T3, T4, TSH) की मात्रा जाची जाती है जो थायराइड की कार्यशैली को मापने में मदद करता है। - इमेजिंग टेस्ट:
यदि ग्रंथि की समस्या का संदेह हो, तो जरुरी इमेजिंग टेस्ट जैसे कि अल्ट्रासाउंड या आइसोटोप स्कैनिंग किया जा सकता है।
इलाज:
थायराइड विकार का इलाज उसके प्रकार और गंभीरता के आधार पर तय किया जा सकता है। यहां कुछ सामान्य इलाज के तरीके हैं:
- आयुर्वेदिक औषधि:
अधिकतर थायराइड रोग का इलाज आयुर्वेदिक औसधियों के द्वारा किया जा सकता है, जो ग्रंथि के कार्य को संतुलित करने में मदद करते हैं। - आहार और जीवनशैली में सुधार:
सही आहार और स्वस्थ जीवनशैली के नियमो का पालन करना थायराइड स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है। - रेडियोएक्टिव आयोडीन इलाज (Radioactive Iodine Treatment):
हाइपरथायराइडिज़म के इलाज के लिए रेडियोएक्टिव आयोडीन इलाज किया जा सकता है, जो एक्स्ट्रा आयोडीन को ग्रंथि से ख़त्म कर सकता है। - सर्जरी: कई स्थितियों में, जैसे कि ग्रंथि में ट्यूमर की वजह से, सर्जरी का विकल्प सामने किया जा सकता है।
थायराइड स्वास्थ्य और जीवनशैली के बीच मजबूत संबंध होता है। थायराइड स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने के लिए कुछ जरुरी जीवनशैली आदतें हो सकती हैं:
- स्वस्थ आहार:
आयोडीन से भरपूर आहार लेना, जैसे कि समुद्री फल, सब्जियाँ, और दूध उत्पाद, थायराइड स्वास्थ्य के लिए जरुरी है। फाइबर से भरपूर और पौष्टिक आहार का भी सेवन करना चाहिए। - सुपरफूड्स:
सुपरफूड्स जैसे कि, धनिये का बीज, मोरिंगा, नारियल तेल, कद्दू के बीज, और अखरोट का सेवन करना थायराइड के लिए लाभकारी हो सकता है। - नियमित व्यायाम:
योग, व्यायाम, या किसी अन्य शारीरिक क्रियाओं का नियमित रूप से करना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है। आसन के नाम कुछ इस प्रकार है;
1. ताड़ासन (Tadasana)
2. उर्ध्व-हस्तोतानासन (Urdhava Hastotanasana)
3. अर्ध-चक्रासन (Ardha chakrasana)
4. नटराजासन (Natarajasana)
5. वीरभद्रासन (Virabhadrasana) - तनाव में कमी:
तनाव को कम करना थायराइड स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। ध्यान, प्राणायाम, और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए अन्य माध्यम का प्रयोग भी किया जा सकता है। तनाव कम करने के लिए समय पर सभी कार्य को अच्छे से करना भी मददगार शाबित हो सकता है। - नियमित चेकअप:
थायराइड विकारों के लिए नियमित चेकअप करवाना जरुरी है। इससे समस्याएं पहले ही पहचानी जा सकती हैं और सही समय पर उपचार भी शुरू किया जा सकता हैं। - रोजाना पर्याप्त नींद लें:
प्रतिदिन निश्चित समय पर निश्चित समय के लिए भरपूर नींद लेना थायराइड स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है। - धूप और विटामिन D:
समय-समय पर धूप में बाहर जाना और विटामिन D की से भरपूर आहार का सेवन करते रहना भी थायराइड स्वास्थ्य के लिए जरुरी है। - नियमित रूप से आयुर्वेदिक दवाएं लें:
यदि डॉक्टर की सलाह है, तो नियमित आधार पर आयुर्वेदिक दवाएं लेना भी थायराइड स्वास्थ्य को सुधार सकता है।
महिलाओ के स्वास्थ्य पर थाइरोइड का प्रभाव (Effect of thyroid on women's health)
जैसा की आप सभी को पता है की थाइरोइड शरीर के मेटाबोलिज्म और हार्मोन स्तर को कण्ट्रोल करने में एक अहम भूमिका निभाता है। इसलिए यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है। यहां कुछ जरुरी और ध्यान देने योग्य बाते हैं जो थायराइड और महिला स्वास्थ्य के बीच संबंधित हैं:
- पीरियड्स और फर्टिलिटी:
थायराइड के असंतुलन का असर पीरियड्स पर हो सकता है और साथ ही फर्टिलिटी को भी प्रभावित कर सकता है। अगर महिला को थायराइड की समस्या है, तो उसे गर्भावस्था के दौरान और प्रारंभिक मातृत्व (early motherhood) में सबसे अच्छा समर्थन मिलना चाहिए। - प्रेग्नेंसी:
गर्भावस्था के दौरान, थायराइड का सही तरीके से कार्य करना जरुरी है, क्योंकि इसके होने से शिशु के होने वाले ब्रेन और शारीरिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए रोजाना थायराइड टेस्ट करवाना जरुरी है। - पोस्टपार्टम थायराइडिटिस (प्रसवोत्तर थाइरोइडाइटिस):
जब डिलीवरी के बाद थायराइड ग्रंथि में सूजन आने लगती है, तो उस स्थिति को पोस्टपार्टम थायराइडिटिस कहते हैं। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के बाद पोस्टपार्टम थायराइडिटिस हो सकता है, जिसमें थायराइड ग्रंथि की समस्या होती है। इससे माँ और बच्चे दोनों पर ही प्रभाव पड़ सकता है। - पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS):
इसमें ओवेरीज में छोटी, गोलीयाँ बनती हैं, जिससे औरों के साथ प्रजनन समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। थायराइड समस्याएं PCOS के लक्षणों को बढ़ा सकती हैं और महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकती हैं, जो विकसित ओवरीजन सिंड्रोम का कारण बन सकता है। - मेनोपॉज:
यह अवस्था उस समय होता है जब महिला के शरीर में गर्भाशय (ओवेरीज) की क्रिया बंद हो जाती है और मासिक धर्म का समापन होता है। महिलाओं में मेनोपॉज के समय, हॉर्मोन स्तरों में परिवर्तन हो सकता है, जिससे थायराइड की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस समय में भी नियमित चेकअप की जरुरत पड़ती है। - ऑटोइम्यून समस्याएं:
हाशिमोटो थायरॉयडिटिस जैसी ऑटोइम्यून समस्याएं महिलाओं में अधिक हो सकती हैं, इसलिए इन्हें नियमित रूप से मापन और चेकअप करवाना चाहिए।
महिलाओं को थायराइड स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, और यदि उन्हें ऐसी कोई समस्या लगती है, तो वे तुरंत निदान और इलाज की ओर ध्यान दें।
Conclusion
थायराइड क्या है, इसके लक्षण, कारण और उपचार के बारे में संक्षेप: थायराइड एक ग्लैंड है जो हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से के मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है। इसके असंतुलित कारण हो सकते हैं विभिन्न लक्षण, जिनका सही उपचार अवश्य करेगा।